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छः ऋतुएँ Name of Six Rituyen - Indian Seasons

छः ऋतुएँ (Rituen in India)

भारत में मौसम को ऋतु भी कहते हैं ये ऋतुएँ छः प्रकार की होती हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं
Here is a list of names of six ritu in Indian Hindu Seasons serial wise :

वसंत ऋतु (Vasant Ritu)

ग्रीष्म ऋतु (Grisham Ritu)

वर्षा ऋतु (Varsha Ritu)

शरद ऋतु (Sharad Ritu)

हेमंत ऋतु (Hemant Ritu)

शिशिर ऋतु (Shishir Ritu)

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घोष और अघोष Ghosh and Aghosh Varn - Alphabets in Hindi

घोष और अघोष (Ghosh and Aghosh Varn - Alphabets) :-  ध्वनि की दृष्टि से जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में स्वरतन्त्रियाँ झंकृत होती है , उन्हें ' घोष ' कहते है और जिनमें स्वरतन्त्रियाँ झंकृत नहीं होती उन्हें ' अघोष ' व्यंजन कहते हैं !  ये घोष - अघोष व्यंजन इस प्रकार हैं -  In Hindi, See below Ghosh and Aghosh Varn : घोष                                   अघोष ग , घ , ङ                           क , ख ज , झ , ञ                          च , छ ड , द , ण , ड़ , ढ़                  ट , ठ द , ध , न                            त , थ ब , भ , म                            प , फ य , र , ल , व , ह                  श , ष , स

अल्पप्राण और महाप्राण (Alppraan and Mahapraan Alphabets)

अल्पप्राण और महाप्राण (Alppraan and Mahapraan Varn - Alphabets) :-  जिन वर्णों के उच्चारण में मुख से कम श्वास निकले उन्हें ' अल्पप्राण ' कहते हैं ! और जिनके उच्चारण में  अधिक श्वास निकले उन्हें ' महाप्राण 'कहते हैं! ये वर्ण इस प्रकार है - In Hindi, See below both Alppraan and Mahapraan Varn : अल्पप्राण                महाप्राण क , ग , ङ               ख , घ च , ज , ञ              छ , झ ट , ड , ण               ठ , ढ त , द , न               थ , ध प , ब , म               फ , भ य , र , ल , व        श , ष , स , ह

अन्विति Anviti in Hindi with example

अन्विति ( Anviti hindi definition) :- जब वाक्य के संज्ञा पद के लिंग, वचन, पुरुष, कारक के अनुसार किसी दूसरे पद में समान परिवर्तन हो जाता है तो उसे अन्विति (Anviti) कहते हैं। अन्विति का प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से होता है:-  Use of Anvati is listed below : (क) कर्तरि प्रयोग (Kartri) :- जिस में क्रिया के पुरुष, लिंग और वचन कर्ता के अनुसार होते हैं, क्रिया के उस प्रयोग को कर्तरि प्रयोग कहते हैं। यह ज़रूरी है कि कर्ता विभक्ति रहित हो जैसे गीता पुस्तक पढेगी। (ख) कर्मणि प्रयोग (Karmni) :- जिस में क्रिया के लिंग और वचन कर्म के अनुसार हों उसे कर्मणि प्रयोग कहते हैं। कर्मणि प्रयोग में दो प्रकार की वाक्य रचनाएं मिलती हैं। कर्तृवाच्य की जिन भूतकालिक क्रियाओं के कर्ता के साथ 'ने' विभक्ति लगी होती है जैसे राम ने पत्र लिखा। दूसरे कर्मवाच्य में यहाँ कर्ता के साथ 'से' या 'के द्वारा' परसर्ग लगते हैं लेकिन कर्म के साथ 'को' परसर्ग नहीं लगता जैसे हमसे लड़के गिने गए। (ग) भावे प्रयोग (Bhave) : - इसमें क्रिया के पुरुष लिंग और वचन कर्ता या कर्म के अनुसार न