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छंद Chhand Definition and Types

छंद (Chhand - Definition in hindi)
छंद - " अक्षरों की संख्या एवं क्रम ,मात्रा गणना तथा यति -गति के सम्बद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पघरचना ' छंद ' कहलाती है !

छंद के अंग इस प्रकार है (There are six angs of Chhand) -

1 . चरण (Charan)
छंद में प्राय: चार चरण होते हैं ! पहले और तीसरे चरण को विषम चरण तथा दूसरे और चौथे चरण को सम चरण कहा जाता है !

2 . मात्रा और वर्ण (Matra aur Varn)
मात्रिक छंद में मात्राओं को गिना जाता है ! और वार्णिक छंद में वर्णों को ! दीर्घ स्वरों के उच्चारण में ह्वस्व स्वर की तुलना में दुगुना समय लगता है ! ह्वस्व स्वर कीएक मात्रा एवं दीर्घ स्वर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैं ! वार्णिक छंदों में वर्णों की गिनती की जाती है !

3 . लघु एवं गुरु (Laghu Aur Guru)
छंद शास्त्र में ये दोनों वर्णों के भेद हैं ! ह्वस्व को लघु वर्ण एवं दीर्घ को गुरु वर्ण कहा जाता है ! ह्वस्व अक्षर का चिन्ह ' । ' है ! जबकि दीर्घ का चिन्ह ' s ' है !

= लघु - अ ,इ ,उ एवं चन्द्र बिंदु वाले वर्ण लघु गिने जाते हैं !

= गुरु - आ ,ई ,ऊ ,ऋ ,ए ,ऐ ,ओ ,औ ,अनुस्वार ,विसर्ग युक्त वर्ण गुरु होते हैं ! संयुक्त वर्ण के
पूर्व का लघु वर्ण भी गुरु गिना जाता है !

4 . संख्या और क्रम (Sankhya Aur Kram)
मात्राओं एवं वर्णों की गणना को संख्या कहते हैं तथा लघु -गुरु के स्थान निर्धारण को क्रम कहते हैं !

5 . गण (Gan)
तीन वर्णों का एक गण होता है ! वार्णिक छंदों में गणों की गणना की जाती है ! गणों की संख्या आठ है ! 
इनका एक सूत्र है (Hindi Gan ka Sutra)-

' यमाताराजभानसलगा '
इसके आधार पर गण ,उसकी वर्ण योजना ,लघु -दीर्घ आदि की जानकारी आसानी से हो जाती है !

गण का नाम उदाहरण चिन्ह

1 . यगण यमाता ISS

2 मगण मातारा SSS

3 . तगण ताराज SSI

4 . रगण राजभा SIS

5 . जगण जभान ISI

6 . भगण भानस SII

7 . नगण नसल III

8 . सगण सलगा IIS

6. यति -गति -तुक (Yati Gati Tuk)
यति का अर्थ विराम है , गति का अर्थ लय है ,और तुक का अर्थ अंतिम वर्णों की आवृत्ति है ! चरण के अंत में तुकबन्दी के लिए समानोच्चारित शब्दों का प्रयोग होता है ! जैसे - कन्त ,अन्त ,वन्त ,दिगन्त ,आदि तुकबन्दी वाले शब्द हैं , जिनका प्रयोग करके छंद की रचना की जा सकती है ! यदि छंद में वर्णों एवं मात्राओं का सही ढंग से प्रयोग प्रत्येक चरण से हुआ हो तो उसमें स्वत: ही ' गति ' आ जाती है !

- छंद के दो भेद है (In Hindi, There are two types of Chhands)-

1 . वार्णिक छंद
वर्णगणना के आधार पर रचा गया छंद वार्णिक छंद कहलाता है ! ये दो प्रकार के होते हैं -
क . साधारण - वे वार्णिक छंद जिनमें 26 वर्ण तक के चरण होते हैं !
ख . दण्डक - 26 से अधिक वर्णों वाले चरण जिस वार्णिक छंद में होते हैं उसे दण्डक कहा जाता है ! घनाक्षरी में 31 वर्ण होते हैं अत: यह दण्डक छंद का उदाहरण है !

2 . मात्रिक छंद
मात्राओं की गणना पर आधारित छंद मात्रिक छंद कहलाते हैं ! यह गणबद्ध नहीं होता । दोहा और चौपाई मात्रिक छंद हैं !

प्रमुख छंदों का परिचय:

1 . चौपाई
यह मात्रिक सम छंद है। इसमें चार चरण होते हैं . प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं . पहले  चरण की तुक दुसरे चरण से तथा तीसरे चरण की तुक चौथे चरण से मिलती है प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है। चरण के अंत में जगण (ISI) एवं तगण (SSI) नहीं होने चाहिए। 

उदाहरण :

I I I I S I S I I I S I I I I I S I I I S I I S I I
जय हनुमान ग्यान गुन सागर । जय कपीस तिहु लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बलधामा । अंजनि पुत्र पवन सुत नामा।।
S I SI I I I I I I S S S I I SI I I I I I S S

2. दोहा
यह मात्रिक अर्द्ध सम छंद है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 13 मात्राएँ और द्वितीय एवं चतुर्थ  चरण में 11 मात्राएँ होती हैं . यति चरण में अंत में होती है . विषम चरणों के अंत में जगण (ISI) नहीं होना चाहिए तथा सम चरणों के अंत में लघु होना चाहिए। सम चरणों में तुक भी होनी चाहिए। 

उदाहरण -

S I I I I I I S I I I I I I I I I I I S I
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।
बरनउं रघुवर विमल जस, जो दायक फल चारि ।।
I I I I I I I I I I I I I S S I I I I S I

3. सोरठा
यह मात्रिक अर्द्धसम छंद है !इसके विषम चरणों में 11मात्राएँ एवं सम चरणों में 13 मात्राएँ होती हैं ! तुक प्रथम एवं तृतीय चरण में होती है ! इस प्रकार यह दोहे का उल्टा छंद है !

उदाहरण -

SI SI I I SI I S I I I I I S I I I
कुंद इंदु सम देह , उमा रमन करुनायतन ।
जाहि दीन पर नेह , करहु कृपा मर्दन मयन ॥
S I S I I I S I I I I I S S I I I I I

4. कवित्त
वार्णिक समवृत्त छंद जिसमें 31 वर्ण होते हैं ! 16 - 15 पर यति तथा अंतिम वर्ण गुरु होता है ! 

उदाहरण -

सहज विलास हास पियकी हुलास तजि , = 16 मात्राएँ
दुख के निवास प्रेम पास पारियत है ! = 15 मात्राएँ

कवित्त को घनाक्षरी भी कहा जाता है ! कुछ लोग इसे मनहरण भी कहते हैं !

5 . गीतिका
मात्रिक सम छंद है जिसमें 26 मात्राएँ होती हैं ! 14 और 12 पर यति होती है तथा अंत में लघु -गुरु का प्रयोग है ! 
उदाहरण -

मातृ भू सी मातृ भू है , अन्य से तुलना नहीं ।

6 . द्रुत बिलम्बित
वार्णिक समवृत्त छंद में कुल 12 वर्ण होते हैं ! नगण , भगण , भगण,रगण का क्रम रखा जाता है ! 

उदाहरण -

न जिसमें कुछ पौरुष हो यहां
सफलता वह पा सकता कहां ?

7 . इन्द्रवज्रा
वार्णिक समवृत्त , वर्णों की संख्या 11 प्रत्येक चरण में दो तगण ,एक जगण और दो गुरु वर्ण । 

उदाहरण -

होता उन्हें केवल धर्म प्यारा ,सत्कर्म ही जीवन का सहारा ।

8 . उपेन्द्रवज्रा -  
वार्णिक समवृत्त छंद है ! इसमें वर्णों की संख्या प्रत्येक चरण में 11 होती है । गणों का क्रम है - जगण , तगण ,जगण और दो गुरु । 

 उदाहरण -

बिना विचारे जब काम होगा ,कभी न अच्छा परिणाम होगा ।

9 . मालिनी -  
वार्णिक समवृत्त है , जिसमें 15 वर्ण होते हैं ! 7 और 8 वर्णों के बाद यति होती है। गणों का क्रम नगण ,नगण, भगण ,यगण ,यगण । 

 उदाहरण -

पल -पल जिसके मैं पन्थ को देखती थी ।
निशिदिन जिसके ही ध्यान में थी बिताती ॥

10 . मन्दाक्रान्ता -  
वार्णिक समवृत्त छंद में 17 वर्ण भगण, भगण, नगण ,तगण ,तगण और दो गुरु वर्ण के क्रम में होते हैं । यति 10 एवं 7 वर्णों पर होती है ! 

उदाहरण -

कोई पत्ता नवल तरु का पीत जो हो रहा हो ।
तो प्यारे के दृग युगल के सामने ला उसे ही ।
धीरे -धीरे सम्भल रखना औ उन्हें यों बताना ।
पीला होना प्रबल दुःख से प्रेषिता सा हमारा ॥

11 . रोला
मात्रिक सम छंद है , जिसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं तथा 11 और 13 पर यति होती है ! प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु या दो लघु वर्ण होते हैं ! दो -दो चरणों में तुक आवश्यक है ! 

उदाहरण
I I I I SS I I I S I S S I I I I S
नित नव लीला ललित ठानि गोलोक अजिर में ।
रमत राधिका संग रास रस रंग रुचिर में ॥
I I I S I S SI SI I I SI I I I S


12 . बरवै
यह मात्रिक अर्द्धसम छंद है जिसके विषम चरणों में 12 और सम चरणों में 7 मात्राएँ होती हैं ! यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है ! सम चरणों के अन्त में जगण या तगण होने से बरवै की मिठास बढ़ जाती है ! 

उदाहरण -

S I SI I I S I I I S I S I
वाम अंग शिव शोभित , शिवा उदार ।
सरद सुवारिद में जनु , तड़ित बिहार ॥
I I I I S I I S I I I I I I S I

13 . हरिगीतिका
यह मात्रिक सम छंद हैं ! प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं ! यति 16 और 12 पर होती है तथा अंत में लघु और गुरु का प्रयोग होता है ! 

उदाहरण -

कहते हुए यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए ।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ॥
I I S IS S SI S S S IS S I I IS

14. छप्पय
यह मात्रिक विषम छंद है ! इसमें छ: चरण होते हैं - प्रथम चार चरण रोला के अंतिम दो चरण उल्लाला के ! छप्पय में उल्लाला के सम -विषम चरणों का यह योग 15 + 13 = 28 मात्राओं वाला अधिक प्रचलित है ! 

उदाहरण -

I S I S I I S I I I I S I I S I I S
रोला की पंक्ति (ऐसे चार चरण ) - जहां स्वतन्त्र विचार न बदलें मन में मुख में

उल्लाला की पंक्ति (ऐसे दो चरण ) - सब भांति सुशासित हों जहां , समता के सुखकर नियम ।
I I S I I S I I S I S I I S S I I I I I I I

15. सवैया
वार्णिक समवृत्त छंद है ! एक चरण में 22 से लेकर 26 तक वर्ण होते हैं ! इसके कई भेद हैं ! 

उदाहरण -

(1) मत्तगयंद (2) सुन्दरी सवैया (3) मदिरा सवैया (4) दुर्मिल सवैया (5) सुमुखि सवैया

(6)किरीट सवैया (7) गंगोदक सवैया (8) मानिनी सवैया (9) मुक्तहरा सवैया

(10) बाम सवैया (11) सुखी सवैया (12) महाभुजंग प्रयात

यहाँ मत्तगयंद सवैये का उदाहरण प्रस्तुत है -

सीख पगा न झगा तन में प्रभु जाने को आहि बसै केहि ग्रामा ।
धोती फटी सी लटी दुपटी अरु पांव उपानह की नहिं सामा ॥
द्वार खड़ो द्विज दुर्बल एक रहयो चकिसो वसुधा अभिरामा ।
पूछत दीन दयाल को धाम बतावत आपन नाम सुदामा ॥

यहाँ ' को ' शब्द को ह्वस्व पढ़ा जाएगा तथा उसकी मात्रा भी एक ही गिनी जाती है !
मत्तगयंद सवैये में 23 अक्षर होते हैं ! प्रत्येक चरण में सात भगण ( SII ) और अंत में दो गुरु वर्ण होते हैं तथा चारों चरण तुकान्त होते हैं !

16. कुण्डलिया
मात्रिक विषम संयुक्त छंद है जिसमें छ: चरण होते हैं! इसमें एक दोहा और एक रोला होता है ! दोहे का चौथा चरण रोला के प्रथम चरण में दुहराया जाता है तथा दोहे का प्रथम शब्द ही रोला के अंत में आता है ! इस प्रकार कुण्डलिया का प्रारम्भ जिस शब्द से होता है उसी से इसका अंत भी होता है ! 

उदाहरण -

SS I I S S I S I I S I SS S I
सांई अपने भ्रात को ,कबहुं न दीजै त्रास ।
पलक दूरि नहिं कीजिए , सदा राखिए पास ॥
सदा राखिए पास , त्रास कबहुं नहिं दीजै ।
त्रास दियौ लंकेश ताहि की गति सुनि लीजै ॥
कह गिरिधर कविराय राम सौं मिलिगौ जाई ।
पाय विभीषण राज लंकपति बाज्यौ सांई ॥
S I I S I I S I S I I I S S S S

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